Dipanshu Ranjan's Hindi Poetry
Friday, 1 September 2023
Saturday, 7 December 2019
मेरी कलम
मेरी ही तरह बड़ी आलसी हो गई है मेरी कलम भी,
जब भी कहता हूँ लिखों मेरे दिल के हालात, तो कहती है.. 'रंजन' फिर कभी।
जब भी कहता हूँ लिखों मेरे दिल के हालात, तो कहती है.. 'रंजन' फिर कभी।
टाल मटोल की ये आदत इसने मुझसे ही सीखी है,
शायद इसीलिए इसकी स्याही अब पड़ गई फीकी है।
पहले ये ऐसी नहीं थी.. खूब चलती थी और दिल के हालात बयां करती थी।
खुश होने पर खुशियाँ और ग़मगीन होने पर दर्द लिखती थी।
चीखती थी चिल्लाती थी.. कभी दो पल रुक भी जाए तो रुक के फिर शुरू हो जाती थी।
एक दिन मैंने ही इसके रुख को बदल दिया,
मानों जैसे मैंने इसके भूख को बदल दिया।
दिल के हाल के बजाय दुनिया के हालात पर इसकी तबज्जो कर दी,
इसके रुख बदलने का हर्जाना मानों मैंने इसके रूह को खो कर दी।
चलती है ये अब भी बहुत.. करती है दुनिया जहान की बातें,
जो बयां नहीं कर पाती है? वो हैं बस मेरे अन्दर की हालातें।
Saturday, 3 February 2018
ये वक़्त कितनी जल्दी बीत गया
अभी कल हीं तो तेरे आने की खुशियां मनाई थी,
अभी कल हीं तो तूने पहली बार माँ पुकारा था,
अभी कल हीं तो तूने चलना सीखा था,
अभी कल हीं तो तू स्कूल जाने लगी थी,
अभी कल हीं तो तेरा कॉलेज खत्म हुआ था ।
ये वक़्त कितनी जल्दी बीत गया,
अभी कल हीं तो तेरी बारात आएगी,
अभी कल हीं तो तू दुल्हन सी सजाई जाएगी,
अभी कल हीं तो तेरे सात फेरे हो जाएंगे,
अभी कल हीं तो तेरी डोली उठाई जाएगी,
अभी कल हीं तो तू किसी और कि हो जाएगी ।
Sunday, 26 November 2017
तेरे हुश्न के सुहाने से सफ़र पे हूँ..
तेरी हर अदा.. तेरे हर अंदाज,
के जानने हैं मुझे सब राज,
है जिस जिस पे तुझे नाज़,
आज न कर कोई रोक टोक..
है यहाँ कोई नहीं.. मैं तेरे घर पे हूँ.
तेरे हुश्न के सुहाने से सफ़र पे हूँ,
सिर से पाँव तक जाना है अभी कमर पे हूँ !
ना रहे हमदोनों एक दूसरे से अनजाने,
दिखा दे मुझे तू अपने सारे खजाने..
ला एक एक गहना मैं पहचान लूं,
तेरे हाथों को अपने हाथों में थाम लूं..
ना रख दरम्यान कोई बंदिश..
खोल दे सारे दरवाजे.. मैं तेरे दर पे हूँ,
तेरे हुश्न के सुहाने से सफ़र पे हूँ,
सिर से पाँव तक जाना है अभी कमर पे हूँ !
Friday, 3 November 2017
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को
वो रात भर यादें छूती रहीं..
मेरे जहन के हर हिस्सों को,
सुबह तक कोशिश की सोने की..
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को !!
चमकती है आँखे हर मोड़ पे.. जाने किस्सा कब मुड़े,
कहानी हमारी भी शुरू हो जाए इस बार बस..
जाने क्यों भरोसा है अब भी ये मेरे ख्वाहिशों को !
सुबह तक कोशिश की सोने की..
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को !!
छोडती नहीं मेरी उम्मीदें दामन तेरे ख्यालों का..
जैसे बंद हूँ मैं तुझमे.. बे-चाभी
के तालों सा,
कॉन्क्रीट के दीवारों पे भी
तू साफ़ दिखती है,
बता क्या करूँ मैं इन ना
फूटने वालें शीशों को?
सुबह तक कोशिश की सोने की..
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को !!
Tuesday, 24 October 2017
इश्क मधुमक्खी है
बहोत मीठी सी थी.. एक बार जो मैंने चक्खी है,
आँखों से शुरू हो कर दिल तक पहुचती है..
फिर दिल पे अपना कब्जा सा जमा लेती है,
पहले अपने काबू में करती है..
और फिर बेकाबू सा बना देती है,
ये पता हीं नहीं चलता के कौन अच्छा है..
जो इसके साथ है या जिसने इससे दुरी बना रक्खी है !
बहोत मीठी सी थी.. एक बार जो मैंने चक्खी है,
डंक मारती है.. शहद उगलती है.. इश्क मधुमक्खी है !!
इसके आगोश में आ के फिर निकलना मुश्किल..
गिरना तो आसान इसमें.. पर सम्हलना मुश्किल,
दस्तूर-ए-इश्क है ऐसा कह गया ग़ालिब..
डूबना इसमें आसान पर डूब के निकलना मुश्किल !
जब तक इसमें ना डूबे कुछ पता नही चलता..
मानो ये दरिया-ए-इश्क किसी ने ढक्कन से ढक्की है !
बहोत मीठी सी थी.. एक बार जो मैंने चक्खी है,
डंक मारती है.. शहद उगलती है.. इश्क मधुमक्खी है !!
Saturday, 21 October 2017
चहुँओर दिखे मोहे प्यार
तू गंगा सी बहती रहे..
मैं गोमुख काशी पटना हो जाऊं,
तेरी छोटी छोटी अंखियों का..
मैं एकलौता सपना हो जाऊं !
तेरे बिन लागे हर पल उबाऊ,
तेरा साथ लगे त्यौहार..
चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार प्यार, चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार..
रब ने जोड़ा ये तार तार, चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार !
तू सुबह के सूरज की रश्मियाँ..
हलके हलके छिटकती रहे,
मैं बन के बादल कहीं से आऊँ..
और तू मुझमे सिमटती रहे !
तुम हो तो सारे मौसम,
तेरे बिन आसमां अंधियार..
चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार प्यार, चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार..
रब ने जोड़ा ये तार तार, चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार !
तू हीं राधा तू हीं रुक्मिणी..
और मैं तेरा कृष्ण हो जाऊं,
तू ना हो साथ मेरे तो..
मैं भीष्म हो जाऊं,
तू रहे तो मैं रहूँ,
तू नहीं तो न हो मेरा अवतार..
चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार प्यार, चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार..
रब ने जोड़ा ये तार तार, चहुँ ओर दिखे मोहे प्यार !
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