Sunday, 26 November 2017
Friday, 3 November 2017
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को
वो रात भर यादें छूती रहीं..
मेरे जहन के हर हिस्सों को,
सुबह तक कोशिश की सोने की..
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को !!
चमकती है आँखे हर मोड़ पे.. जाने किस्सा कब मुड़े,
कहानी हमारी भी शुरू हो जाए इस बार बस..
जाने क्यों भरोसा है अब भी ये मेरे ख्वाहिशों को !
सुबह तक कोशिश की सोने की..
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को !!
छोडती नहीं मेरी उम्मीदें दामन तेरे ख्यालों का..
जैसे बंद हूँ मैं तुझमे.. बे-चाभी
के तालों सा,
कॉन्क्रीट के दीवारों पे भी
तू साफ़ दिखती है,
बता क्या करूँ मैं इन ना
फूटने वालें शीशों को?
सुबह तक कोशिश की सोने की..
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को !!
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