Sunday 12 February 2012

अपने मुह मियाँ मीठू ...



मै और मेरा दर्जी मास्टर
अक्सर ये बातें करते है,
कैसे भी कपडे सिल देता हूँ,
पर आप उनमे बड़े अच्छे लगते है...!!


ये जो सुई धागे की कढाई
मेरे कपड़ों पे की है
कहीं गलत भी है कहीं सही भी है...!

पर आप इसे पहन लो तो छुप जाती हैं सारी गलतियाँ,
जो भी थोड़ी बहुत मैंने की है...!!


ये कॉलर, ये बाजूबंद जो तुमने बनाए हैं
बड़े ओल्ड फैशन है.....!

सर आप पहन भर लो तो दुनिया कहेगी यही तो लेटेस्ट फैशन है...!!


क्या कहूँ तुम बहुत मलाई लगाते हो...!
इसीलिए तो शायद आप मेरे पास सिलाई करवाते हो...!!


अब और क्या लिखूं मेरी और मेरे दर्जी की जो बाते हैं,
फिर आप हीं कहोगे ये कवि अपने मुह मियाँ मीठू बन जाते है..:)

Friday 10 February 2012

शहरों की रेत और गावं के खेत...


शहरों की रेत में
अपने गावं के खेत ढूंढता हूँ,
खुली आँखें देख नहीं पाती
पर दिख जाता है जब भी आँखें मूंदता हूँ...


खेतों के इर्द-गिर्द की पगडंडियाँ
यहाँ के फूटपाथ पे महसूस नहीं होती,
अजीब बात है वहाँ लोग पगडंडियों पे चलतें है 
और यहाँ आधी मुंबई फूटपाथ पे है सोती...


गाँव का छोटा सा देवी मंदिर
यहाँ के भव्य मंदिरों से बहुत छोटा लगता है,
पर भक्ति-भावना तो एक जैसा ही दोनों जगह जगता है....




गाँव के खेतों में हर मौसम की अलग फसल उपजती है,
और यहाँ हमें हर प्रोजेक्ट एक जैसी ही लगती है...:) 


उमंगों भरा होता है गाँव का हर त्यौहार,
यहाँ तो बस छुट्टीयों के लिए होता है त्योहारों का इन्तेजार...


वहाँ की शादियों में महीनों खुशियाँ मनाई जाती है,
और यहाँ सिर्फ दो घंटे में शादियाँ निपट जाती है...


शहरों में रौनक तो है पर शान्ति नहीं,
और गाँव में रौनक भी है और शांति भी...!!

Monday 6 February 2012

हाइकू में पहला हाथ !!



हाइकू में पहली बार अपनी लेखनी चला रहा हूँ,
आप पढ़ें और बताएं कैसी है....!!



शव्द मेरे हैं
तेरे लिए कहें है
सुन ले जरा


मै सूर्योदय
तुम सुबह मेरी
ना हो शाम


महके इत्र
गर हो तेरा जिक्र 
बहक जाऊं


मन मोहिनी
चंचल चितवनी 
मृगनयनी


कैसे भुलाएँ 
चंचल चितवन
नैनों में बसी


तेरी तलाश
पनघट पे प्यास
तू होती काश 


इश्क का युद्ध
दिल है तलवार
कर दे  वद्ध


मोर का नाच
प्रीत के बसंत में 
मनभावन


इश्क में दूरी
है बड़ी नागवार
कैसे हो प्यार


इश्क का दिन
वेलनटाइन डे
बाकी दिन क्या?


इश्क हो रोज 
हारेगी नफरत
जीतेगा प्यार


(हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में 'हाइकू' नव्यतम विधा है। हाइकु मूलत: जापानी साहित्य की प्रमुख विधा है। आज हिंदी साहित्य में हाइकु की भरपूर चर्चा हो रही है। हिंदी में हाइकु खूब लिखे जा रहे हैं और अनेक पत्र-पत्रिकाएँ इनका प्रकाशन कर रहे हैं।
हाइकु सत्रह (१७) अक्षर में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ और तीसरी में ५ अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है, जैसे 'सुगन्ध' में तीन अक्षर हैं - सु-१, ग-१, न्ध-१) तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात एक ही वाक्य को ५,७,५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।)

Friday 3 February 2012

ये विकास जातिवाद का करते हैं...!!


कहीं अगड़ी के मतवाले,
कहीं पिछड़ी के रखवाले,
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...


दलित, पिछड़ा, अतिपिछडा,
और करोगे कितना टुकरा,
अब तो समझो आरक्षण की चालें..
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...


हरिजन कहते गाँधी गए,
आरक्षण कहते आंबेडकर,
60 साल हुए कुछ नहीं बदला
अभी तक क्यूँ हो इनको सम्हाले...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...


मंडल कमंडल बड़े विद्वान्,
OBC बाट के हुए महान,
किसी के लिए रास्ते चौड़े कर दिए
और किसी लिए संकीर्ण बना डाले...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...


संविधान ने दिया समानता का अधिकार,
फिर ये आरक्षण का कैसा विकार,
वक़्त रहते सम्हल जाओ
कहीं कोई फायदा न उठा ले...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...


गरीबी जात देख के नहीं आती है,
तो आरक्षण जातियों की क्यूँ की जाती है,
अमीर पिछड़ी जाती के लोग हस्ते हैं,
और संविधान की गलतियों पे फव्तियाँ कसते है,
कोई तो इन गलतियों को मिटा ले...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...


सुना है इस धर्मनिरपेक्ष देश में अब धर्म के नाम पे आरक्षण होंगें,
फिर तो शर्तीया देश के कुछ और टुकरे होंगे,
तब हम मिल के इन टुकरो से खेलेंगे खेल मरने-मारने वाले...
अब भी सम्हल जाओ...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...