Saturday 7 December 2019

मेरी कलम

मेरी ही तरह बड़ी आलसी हो गई है मेरी कलम भी,
जब भी कहता हूँ लिखों मेरे दिल के हालात, तो कहती है.. 'रंजन' फिर कभी।

टाल मटोल की ये आदत इसने मुझसे ही सीखी है,
शायद इसीलिए इसकी स्याही अब पड़ गई फीकी है। 



पहले ये ऐसी नहीं थी.. खूब चलती थी और दिल के हालात बयां करती थी। 
खुश होने पर खुशियाँ और ग़मगीन होने पर दर्द लिखती थी। 
चीखती थी चिल्लाती थी.. कभी दो पल रुक भी जाए तो रुक के फिर शुरू हो जाती थी। 

एक दिन मैंने ही इसके रुख को बदल दिया, 
मानों जैसे मैंने इसके भूख को बदल दिया। 

दिल के हाल के बजाय दुनिया के हालात पर इसकी तबज्जो कर दी,
इसके रुख बदलने का हर्जाना मानों मैंने इसके रूह को खो कर दी। 

चलती है ये अब भी बहुत.. करती है दुनिया जहान की बातें,
जो बयां नहीं कर पाती है? वो हैं बस मेरे अन्दर की हालातें।