Dipanshu Ranjan's Hindi Poetry
Friday 15 May 2015
मैं फूल तू बागीचा..
तेरे दिल के बागीचे में
वहीँ पे कहीं हाँ नीचे में
मैं गिर गया
गिर के सूख गया
कोई नया खिला
जिसपे तेरा रुख गया
मैं फूल था
तू ज़मीन-ए-बागीचा
मुझे भी था
तुमने प्यार से सींचा
मेरा नसीब था
गिर के तुझमे खो जाना
तेरे नसीब में फूल ही फूल
एक को छोड़ दूसरे का हो जाना !!!! :|
Friday 8 May 2015
थोड़ी नौटंकी थोड़ी पागल सी थी..
Friday 1 May 2015
क्या तुम वही हो.....
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