Friday 27 April 2012

अश्क

मेरे अश्क मेरे बस में रहते हैं
और अक्सर ये मुझ से कहते हैं...
बह जाउ या ना हूं. . .
ना हूं तो घुट जाऊंगा,
और बह जाऊं तो बेमतलब लुट जाऊंगा...
बड़ी पशोपेश  में हूँ, क्या करूँ
रोऊँ या चुप रहू...!
लुट जाऊं या घुट जाऊं??
गम के खजाने है शायद जो कभी ख़त्म नहीं होते,
और हम घुटते रहते हैं पर नहीं रोते...
मुख्तलिफ है गम और खुशियों की राहें,
गम तो हर दम रहता है पर खुशियाँ आती है गाहे बगाहे. . .
जिंदगी के बेतरतीब रास्तों पे जिए जाते हैं,
दुनिया को सुनते है और खुद की जवान सिए जाते हैं..
कहने को बहुत कुछ होता है,
पर सुनने बाला कोई नहीं होता है. .
खुदी से कहते हैं.. खुदी की सुनते हैं,
जब आँखे भरती है तो पलकें मुन्दते हैं. . .
इन बंद पलकों से कुछ तो अच्छा होता है,
गम का समंदर अन्दर होता है..
और बहार लोगों को मेरे सपनो में खो जाने का इल्म होता है. . .