"क्यूँ"
तू क्यूँ कहती है बहुत कुछ कहे बगैर,
मैं क्यूँ सुनता हूँ तुम्हे सुने बगैर !
क्या माकूल है ये पैमाना रिश्तों में,
कब तक कहें सुने यूँ किस्तों में,
क्यूँ निशाँ छोड़ते हैं बिना चले तेरे पैर,
कैसे कर जाता हूँ बिस्तर पे ही तेरे संग सैर,
कैसे तस्दीक करूँ की मैं हूँ तेरा या कोई गैर,
ये यादों की नदी मेरी है या गैरों के समंदर में रहा हूँ तैर...!!
तू क्यूँ कहती है बहुत कुछ कहे बगैर,
मैं क्यूँ सुनता हूँ तुम्हे सुने बगैर !
शानदार सुन्दर प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,