खुद पे शर्म, आये शर्म
हुए दुश्मन, खुद के हम
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
हुए दुश्मन, खुद के हम
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
आँगन के फूल, को क्यों गए भूल
तोड़ के फेंका, मानो थी शूल
हुआ ना गम, काटते अपना ही तन
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
तोड़ के फेंका, मानो थी शूल
हुआ ना गम, काटते अपना ही तन
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
वक़्त थमा, जो हुई कातिल माँ
वो कैसा पिता, ना मिले क्षमा
मिल के सब जन, सुरु करो रण
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
वो कैसा पिता, ना मिले क्षमा
मिल के सब जन, सुरु करो रण
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
वक़्त थमा, जो हुई कातिल माँ
ReplyDeleteवो कैसा पिता, ना मिले क्षमा
मिल के सब जन, सुरु करो रण
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
बहुत अच्छी विचारणीय प्रस्तुति,....
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
मार्मिक प्रस्तुति....
ReplyDeleteअनु