Friday, 12 December 2014

तूने नज़रें फेरी थी

दिल में जो लगी आग तो माचिस तेरी थी,
पानी था तेरे पास पर तूने नज़रें फेरी थी ।

तेरी आग ने दिल की परतें उधेरी थी,

मैं जलता रहा गलती मेरी थी ।

सूखे ज़ख्मों ने निशाँ कुछ यूँ उकेरी थी,

दिल की दीवारें काली घुप्प अँधेरी थी ।

सन्नाटे में यादों ने चिंगारी बिखेरी थी,

फ़फ़क उठती बस हवा देने की देरी थी ।

दिल में जो लगी आग तो माचिस तेरी थी,

पानी था तेरे पास पर तूने नज़रें फेरी थी ।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-12-2014) को "धर्म के रक्षको! मानवता के रक्षक बनो" (चर्चा-1826) पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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