दिल में जो लगी आग तो माचिस तेरी थी,
पानी था तेरे पास पर तूने नज़रें फेरी थी ।
तेरी आग ने दिल की परतें उधेरी थी,
मैं जलता रहा गलती मेरी थी ।
सूखे ज़ख्मों ने निशाँ कुछ यूँ उकेरी थी,
दिल की दीवारें काली घुप्प अँधेरी थी ।
सन्नाटे में यादों ने चिंगारी बिखेरी थी,
फ़फ़क उठती बस हवा देने की देरी थी ।
दिल में जो लगी आग तो माचिस तेरी थी,
पानी था तेरे पास पर तूने नज़रें फेरी थी ।
पानी था तेरे पास पर तूने नज़रें फेरी थी ।
तेरी आग ने दिल की परतें उधेरी थी,
मैं जलता रहा गलती मेरी थी ।
सूखे ज़ख्मों ने निशाँ कुछ यूँ उकेरी थी,
दिल की दीवारें काली घुप्प अँधेरी थी ।
सन्नाटे में यादों ने चिंगारी बिखेरी थी,
फ़फ़क उठती बस हवा देने की देरी थी ।
दिल में जो लगी आग तो माचिस तेरी थी,
पानी था तेरे पास पर तूने नज़रें फेरी थी ।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-12-2014) को "धर्म के रक्षको! मानवता के रक्षक बनो" (चर्चा-1826) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'