Friday 16 October 2015

वो इश्क़ के शोले नहीं थे.. बस धुंआ था शायद


इश्क के शोले

वो इश्क़ के शोले नहीं थे, बस धुंआ था शायद..
तुम बदल गए, कभी तुम्हे भी प्यार हुआ था शायद

कभी तुम ही कहती थी,

तुम नहीं होते तोह बहोत याद आते हो..
अब जब मैं आदि हो गया हूँ तेरा तो तुम मुह बनाते हो !

कभी तुम कहती थी,
मैं तुम्हे कभी छोड़ने वाली नहीं..
और अब हमेशा साथ रहने की बात पे कहती हो पता नहीं !

मेरा प्यार ही तेरे दिल से कुछ अनछुआ था शायद,
वो इश्क़ के शोले नहीं थे.. बस धुंआ था शायद..
तुम बदल गए.. कभी तुम्हे भी प्यार हुआ था शायद !

कभी तुम ही कहती थी,

तुमसे बात किये बिना सुबह अच्छा नहीं लगता..
और अब तुम्हे मेरा बोला गया कोई लब्ज सच्चा नहीं लगता !


कभी तुम कहती थी,

तुमसे बात करके नींद अच्छी आती है..
और अब तुझसे बात के इन्तेजार में मेरी रात गुजर जाती है !


मैं अच्छा नहीं हमेशा से ही बुरा था शायद..
वो इश्क़ के शोले नहीं थे.. बस धुंआ था शायद..
तुम बदल गए.. कभी तुम्हे भी प्यार हुआ था शायद !

कभी तुम ही कहती थी,

जितना मैं करता हूँ तुम उससे भी ज्यादा मुझसे प्यार करती हो..
और अब तुम्हे मुझसे प्यार है.. ये कहना भी गवारा नहीं करती हो !


कभी तुम कहती थी,

तुमसे हर छोटी छोटी बात बताना अच्छा लगता है,
और अब ना जाने क्यों तुम्हे मुझसे हर बात छुपाना पड़ता है !


हार गया मैं.. कोई बाज़ी-ए-जुआ था शायद..
वो इश्क़ के शोले नहीं थे.. बस धुंआ था शायद..
तुम बदल गए.. कभी तुम्हे भी प्यार हुआ था शायद !!!!

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-10-2015) को "जब समाज बचेगा, तब साहित्य भी बच जायेगा" (चर्चा अंक - 2133) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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