Saturday, 14 July 2012
Wednesday, 11 July 2012
"मंत्री अपने बड़े मजाकिया"
डनलफ़ वाले कुर्सी टेबल, एयर कंडीस्नर कॉन्फ्रेंस हौल
चिल्ल्ड वाला वाटर मिनिरल, संग में सीक कबाब का बाउल !
कुनवे संग मंत्री जी आये, चर्चा है महगाई पर
सुन लो भैये तेरी किस्मत, बैठ के अपनी चारपाई पर !
चिल्ल्ड वाला वाटर मिनिरल, संग में सीक कबाब का बाउल !
कुनवे संग मंत्री जी आये, चर्चा है महगाई पर
सुन लो भैये तेरी किस्मत, बैठ के अपनी चारपाई पर !
TRP की खोज में, रिपोर्टर भी आये भोज में
महगाई की किसको फिकर, सब हैं अपनी मौज में !
मंत्री अपने बड़े मजाकिया, हर बात पे मज़ाक करते हैं
20 की आइसक्रीम चट कर जाते हो और महगी गेंहूँ का विरोध करते हो !!
महगाई की किसको फिकर, सब हैं अपनी मौज में !
मंत्री अपने बड़े मजाकिया, हर बात पे मज़ाक करते हैं
20 की आइसक्रीम चट कर जाते हो और महगी गेंहूँ का विरोध करते हो !!
Saturday, 7 July 2012
ए मह्जवीं...
सपनो में झांके
आ जरा आके,
रात सजा दे
इस रात को कर दे रंगीन..... ए मह्जवीं !
कोई बात तू कर दे हसीं.... ए मह्जवीं !!
तेरी मेरी बातें,
और ए रातें
ना रह सकूँ तेरे बिन.... ए मह्जवीं
इस रात को कर दे रंगीन..... ए मह्जवीं !
कोई बात तू कर दे हसीं.... ए मह्जवीं !!
तेरे संग आके,
जन्नत सा लागे
कोई जन्नत की तू जानशीन.... ए मह्जवीं
मै तो तेरा हो गया हाजरीन... ए मह्जवीं
इस रात को कर दे रंगीन..... ए मह्जवीं !
कोई बात तू कर दे हसीं.... ए मह्जवीं !!
Tuesday, 3 July 2012
"दीपांशु के दोहे"
अलग अलग वक़्त पे लिखे गए कुछ दोहों को आज एक साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ !
धर्म नाम पवित्र है, पड़े ना कोई आँच ।
दिपन् कोई भरमाए तो, बंद ना होवे आँख ॥
अहिंसा शस्त्र अचूक है, हिंसा होवे चूक ।
दोनों शस्त्र सीखिए, सीखे बने अचूक ॥
दिपन् फुल गुलाब का, प्रणय पुष्प कहलाए ।
दिवाने पड़ प्रेम मेँ, काटोँ मे फस जाए ॥
हर हिस्से में बाल है, कैंची लगे कही उस्तरा ।
हो धरती के बाल 'दीप' तुम, धरम है कैंची उस्तरा ॥
हिन्दू मुस्लिम धर्म है, सेकुलर अधर्म ।
जो ना हुआ अपने धर्म का, क्या समझेगा तेरा मर्म ॥
कलयुग मध्यकाल में, आया कलयुग घोर ।
राजा चोरी में लगा, इस रात की ना कोई भोर ॥
Sunday, 17 June 2012
"क्यूँ"

तू क्यूँ कहती है बहुत कुछ कहे बगैर,
मैं क्यूँ सुनता हूँ तुम्हे सुने बगैर !

क्या माकूल है ये पैमाना रिश्तों में,
कब तक कहें सुने यूँ किस्तों में,
क्यूँ निशाँ छोड़ते हैं बिना चले तेरे पैर,
कैसे कर जाता हूँ बिस्तर पे ही तेरे संग सैर,
कैसे तस्दीक करूँ की मैं हूँ तेरा या कोई गैर,
ये यादों की नदी मेरी है या गैरों के समंदर में रहा हूँ तैर...!!
तू क्यूँ कहती है बहुत कुछ कहे बगैर,
मैं क्यूँ सुनता हूँ तुम्हे सुने बगैर !
Monday, 7 May 2012
रुदन
खुद पे शर्म, आये शर्म
हुए दुश्मन, खुद के हम
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
हुए दुश्मन, खुद के हम
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
आँगन के फूल, को क्यों गए भूल
तोड़ के फेंका, मानो थी शूल
हुआ ना गम, काटते अपना ही तन
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
तोड़ के फेंका, मानो थी शूल
हुआ ना गम, काटते अपना ही तन
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
वक़्त थमा, जो हुई कातिल माँ
वो कैसा पिता, ना मिले क्षमा
मिल के सब जन, सुरु करो रण
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
वो कैसा पिता, ना मिले क्षमा
मिल के सब जन, सुरु करो रण
बैरी मन, है शन्न
सुन के रुदन, तेरी रुदन....!
Friday, 4 May 2012
ये हालातें, तेरी भी होंगी शायद....!
ह्म्म्मम्म्म्म....
रुंध गयीं आँखें,
याद आयीं बातें,
तेरी मेरी बातें,
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
रुंध गयीं आँखें,
याद आयीं बातें,
तेरी मेरी बातें,
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
ह्म्म्मम्म्म्म...
तस्वीर तेरी,
आँखों में मेरी
बस सी गयी है,
चाहें भी तो ना जाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
तस्वीर तेरी,
आँखों में मेरी
बस सी गयी है,
चाहें भी तो ना जाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
ह्म्म्मम्म्म्म...
सुनता हूँ तुझको,
बिन तेरे बोले,
आवाज़ तेरी,
लगे गीत गाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
सुनता हूँ तुझको,
बिन तेरे बोले,
आवाज़ तेरी,
लगे गीत गाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
ह्म्म्मम्म्म्म...
खल सी रही है,
तुझसे जुदाई,
गहरी होती खायी,
खुद ही भर जाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
ह्म्म्मम्म्म्म...
प्यार नहीं जानू,
इश्क ना पहचानू,
तुझको अपना मानु,
फिरूं दिल में छुपाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
प्यार नहीं जानू,
इश्क ना पहचानू,
तुझको अपना मानु,
फिरूं दिल में छुपाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
ह्म्म्मम्म्म्म...
खुद से पूछता हूँ,
क्यूँ तुझको ढूंढता हूँ,
दिल कहना चाहे,
जुबां कह ना पाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
खुद से पूछता हूँ,
क्यूँ तुझको ढूंढता हूँ,
दिल कहना चाहे,
जुबां कह ना पाते...
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
ह्म्म्मम्म्म्म...
रुंध गयीं आँखें,
याद आयीं बातें,
तेरी मेरी बातें,
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
रुंध गयीं आँखें,
याद आयीं बातें,
तेरी मेरी बातें,
ये हालातें...
तेरी भी होंगी शायद....!
Friday, 27 April 2012
अश्क
और अक्सर ये मुझ से कहते हैं...
बह जाउ या ना बहूं. . .
ना बहूं तो घुट जाऊंगा,
और बह जाऊं तो बेमतलब लुट जाऊंगा...
बड़ी पशोपेश में हूँ, क्या करूँ
रोऊँ या चुप रहू...!
लुट जाऊं या घुट जाऊं??
गम के खजाने है शायद जो कभी ख़त्म नहीं होते,
मुख्तलिफ है गम और खुशियों की राहें,
गम तो हर दम रहता है पर खुशियाँ आती है गाहे बगाहे. . .
जिंदगी के बेतरतीब रास्तों पे जिए जाते हैं,
दुनिया को सुनते है और खुद की जवान सिए जाते हैं..
कहने को बहुत कुछ होता है,
पर सुनने बाला कोई नहीं होता है. .
खुदी से कहते हैं.. खुदी की सुनते हैं,
जब आँखे भरती है तो पलकें मुन्दते हैं. . .
इन बंद पलकों से कुछ तो अच्छा होता है,
गम का समंदर अन्दर होता है..
और बहार लोगों को मेरे सपनो में खो जाने का इल्म होता है. . .Sunday, 12 February 2012
अपने मुह मियाँ मीठू ...

अक्सर ये बातें करते है,
कैसे भी कपडे सिल देता हूँ,
पर आप उनमे बड़े अच्छे लगते है...!!
ये जो सुई धागे की कढाई
मेरे कपड़ों पे की है
कहीं गलत भी है कहीं सही भी है...!
पर आप इसे पहन लो तो छुप जाती हैं सारी गलतियाँ,
जो भी थोड़ी बहुत मैंने की है...!!
जो भी थोड़ी बहुत मैंने की है...!!
ये कॉलर, ये बाजूबंद जो तुमने बनाए हैं

सर आप पहन भर लो तो दुनिया कहेगी यही तो लेटेस्ट फैशन है...!!
क्या कहूँ तुम बहुत मलाई लगाते हो...!
इसीलिए तो शायद आप मेरे पास सिलाई करवाते हो...!!
अब और क्या लिखूं मेरी और मेरे दर्जी की जो बाते हैं,
फिर आप हीं कहोगे ये कवि अपने मुह मियाँ मीठू बन जाते है..:)
Friday, 10 February 2012
शहरों की रेत और गावं के खेत...
शहरों की रेत में
अपने गावं के खेत ढूंढता हूँ,
खुली आँखें देख नहीं पाती
पर दिख जाता है जब भी आँखें मूंदता हूँ...
खेतों के इर्द-गिर्द की पगडंडियाँ
यहाँ के फूटपाथ पे महसूस नहीं होती,
अजीब बात है वहाँ लोग पगडंडियों पे चलतें है
और यहाँ आधी मुंबई फूटपाथ पे है सोती...
गाँव का छोटा सा देवी मंदिर
यहाँ के भव्य मंदिरों से बहुत छोटा लगता है,
पर भक्ति-भावना तो एक जैसा ही दोनों जगह जगता है....
गाँव के खेतों में हर मौसम की अलग फसल उपजती है,
और यहाँ हमें हर प्रोजेक्ट एक जैसी ही लगती है...:)
उमंगों भरा होता है गाँव का हर त्यौहार,
यहाँ तो बस छुट्टीयों के लिए होता है त्योहारों का इन्तेजार...
वहाँ की शादियों में महीनों खुशियाँ मनाई जाती है,
और यहाँ सिर्फ दो घंटे में शादियाँ निपट जाती है...
शहरों में रौनक तो है पर शान्ति नहीं,
और गाँव में रौनक भी है और शांति भी...!!
Monday, 6 February 2012
हाइकू में पहला हाथ !!
हाइकू में पहली बार अपनी लेखनी चला रहा हूँ,
आप पढ़ें और बताएं कैसी है....!!
शव्द मेरे हैं
तेरे लिए कहें है
सुन ले जरा
मै सूर्योदय
तुम सुबह मेरी
ना हो शाम
महके इत्र
गर हो तेरा जिक्र
बहक जाऊं
मन मोहिनी
चंचल चितवनी
मृगनयनी
कैसे भुलाएँ
चंचल चितवन
नैनों में बसी
तेरी तलाश
पनघट पे प्यास
तू होती काश
इश्क का युद्ध
दिल है तलवार
कर दे वद्ध
मोर का नाच
प्रीत के बसंत में
मनभावन
इश्क में दूरी
है बड़ी नागवार
कैसे हो प्यार
इश्क का दिन
वेलनटाइन डे
बाकी दिन क्या?
इश्क हो रोज
हारेगी नफरत
जीतेगा प्यार
(हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में 'हाइकू' नव्यतम विधा है। हाइकु मूलत: जापानी साहित्य की प्रमुख विधा है। आज हिंदी साहित्य में हाइकु की भरपूर चर्चा हो रही है। हिंदी में हाइकु खूब लिखे जा रहे हैं और अनेक पत्र-पत्रिकाएँ इनका प्रकाशन कर रहे हैं।
हाइकु सत्रह (१७) अक्षर में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ और तीसरी में ५ अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है, जैसे 'सुगन्ध' में तीन अक्षर हैं - सु-१, ग-१, न्ध-१) तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात एक ही वाक्य को ५,७,५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।)
Friday, 3 February 2012
ये विकास जातिवाद का करते हैं...!!
कहीं अगड़ी के मतवाले,
कहीं पिछड़ी के रखवाले,
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...
दलित, पिछड़ा, अतिपिछडा,
और करोगे कितना टुकरा,
अब तो समझो आरक्षण की चालें..
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...
हरिजन कहते गाँधी गए,
आरक्षण कहते आंबेडकर,
60 साल हुए कुछ नहीं बदला
अभी तक क्यूँ हो इनको सम्हाले...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...
मंडल कमंडल बड़े विद्वान्,
OBC बाट के हुए महान,
किसी के लिए रास्ते चौड़े कर दिए
और किसी लिए संकीर्ण बना डाले...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...
संविधान ने दिया समानता का अधिकार,
फिर ये आरक्षण का कैसा विकार,
वक़्त रहते सम्हल जाओ
कहीं कोई फायदा न उठा ले...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...
गरीबी जात देख के नहीं आती है,
तो आरक्षण जातियों की क्यूँ की जाती है,
अमीर पिछड़ी जाती के लोग हस्ते हैं,
और संविधान की गलतियों पे फव्तियाँ कसते है,
कोई तो इन गलतियों को मिटा ले...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...
सुना है इस धर्मनिरपेक्ष देश में अब धर्म के नाम पे आरक्षण होंगें,
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तब हम मिल के इन टुकरो से खेलेंगे खेल मरने-मारने वाले...
अब भी सम्हल जाओ...
ये विकास जातिवाद का करते हैं,
और खुद करते हैं घोटाले...
Wednesday, 25 January 2012
~~गण गण गण गण गणतंत्र~~
गण गण गण गण गणतंत्र
पढो पढाओ देश का मंत्र
सैतालिश में हुए स्वतंत्र
दुनिया भर में ढूंढा मंत्र

लिखा संवैधानिक ग्रन्थ
लिख-लिख के सब लम्बे हो गए,
देश के नेता निकम्मे हो गए
देश बन गया शेकुलर
आरक्षण धर्म-जात पर
लोकतंत्र बस है एक यन्त्र
जो छापे बस कालाधन
गण गण गण गण गणतंत्र
पढो पढाओ देश का मंत्र
Monday, 16 January 2012
टायटेनिक रिटर्न्स
एक रोज़
लेके Rose
पहुंचा Rose के घर,
कहा चल तेरे लिए नयी टायटेनिक बनबाई है,
डर कैसा!
तेरा तो ना कोई मंगेतर है ना भाई है...
चल कोई नयी पेंटिंग करेंगे,
कोई कोना देख कर डेटिंग करंगे...
Rose बोली ना बाबा ना फिर से डूब गयी तो???
तुम तो निकल लोगे
और एक सुन्दर लड़की को लकड़ी पे तैरता छोड़ दोगे ...
स्वीटहार्ट क्या कह रही हो
बिना मतलब के डर रही हो...
वो भुत की कहानी थी
और ये बर्तमान की रवानी है
वो दुनिया सुनाती है
और यहाँ हमें खुद निभानी है...
चल डर के आगे जीत है,
तेरी मेरी प्रीत है
प्यार किया तो डरना क्या
तू मेरी मनमीत है...
अगर ऐसा है तोह फिर ठीक है,
और क्या बहाना करूँ तू बरा ढीठ है ...
पर एक बात बता समंदर की गहराई कितनी होती है??
क्या कहू, उससे ज्यादा गहरी तो तेरी आँखों की ज्योति है...
तुझे तो मै बचा लूँगा, मुझे कौन बचाएगा??
आँखे बंद मत करना सारा जमाना थम जाएगा...
कितनी प्यारी बातें करते हो,
तुम शाहरुख़ खान से लगते हो...
क्यूँ बेबजह शाहरुख़ को बुला रही है,
सलमान का दुश्मन बना रही है
वो यहाँ आ गया तो गजब हो जायेगा,
तुझे भी कुछ दिन का गर्ल फ्रेंड बनाएगा,
और मेरा पत्ता कट जाएगा....:(
टेंशन मत ले मै तो मज़ाक कर रही थी,
तेरे दिल के हालत पढ़ रही थी,
पढाई बहुत हुई चलो अब चलते हैं,
टायटेनिक की राह पकड़ते हैं....
ओके चलो मैं तैयार हूँ,
तेरे साथ चलने को बेकरार हूँ,
बेकरारी को बिलकुल कम मत होने दो,
और कार की अगली सीट पे बैठो..
वैसे तो मुझे कार चलाना बिलकुल नहीं आता है,
पर कविता मेरी तो CREADIT भी मुझको ही जाता है...
चाभी डाली कार में और क्लच गेयर ब्रेक सब कुछ चला दिया,
और एक सांस में ही बंदरगाह पे कार को पंहुचा दिया...
Rose ने पूछा: ये बंदरगाह का नाम बंदरगाह क्यूँ पड़ा??
मैंने कहा...
इतना भी नहीं ज्ञान!
ये है एक पौराणिक नाम,
इसके माध्यम से बंदरों को आगाह किया जाता था,
वरना बेचारा बन्दर डूब जाता था,
अब दुनिया बदल गयी है,
बंदरगाह भी इंसानों की होके रह गयी है......
इतने में एक भोपू बजा..
ये शायद टायटेनिक के छूटने का इशारा था,
और उन्हें इन्तेजार बस हमारा था...
किसी तरह भागे भागे टायटेनिक पे सवार हो गए,
लहरों पे तैरने को तैयार हो गए....
To be continued ...:)
Saturday, 14 January 2012
किसकी गलती ??
मैंने उसे देखा या उसने मुझे देखा,
बीच में खिंची थी एक लछमन रेखा !
उसने नज़रों से कुछ ऐसे फेका,
की घायल होके सबने देखा !
आरजूएं अंगार बन गयी,
वो इस आरज़ू-ए-समंदर की पतवार बन गयी !
हम बहते चले गए और पता भी न चला,
इसमें हमारी गलती क्या थी भला??
पर ज़माने की कारिस्तानी देखो,
सबने हमी को कहा नज़रें नीची रखो !
हमने कहा तुम खूबसूरत हो इसमें तेरी क्या गलती??
और हम खूबसूरती पसंद इसमें मेरी क्या गलती??
:)
Tuesday, 10 January 2012
गीत जो करे भयभीत - 2....;)
फटे होठ तेरे
जिस्म चर्वी भरा,
लगे टुनटुन सा मुझे तन तेरा ।
जम के गुस्सा हो
सामने जब आए,
रुके मेरी सांस
आए उससे बास..!
कभी मेरे साथ
जो तु निकले बाजार,
तो लोग कहेऽऽ
Dips है लाचार ।
ओ हो होऽऽऽऽ
:p8-)
जिस्म चर्वी भरा,
लगे टुनटुन सा मुझे तन तेरा ।
जम के गुस्सा हो
सामने जब आए,
रुके मेरी सांस
आए उससे बास..!
कभी मेरे साथ
जो तु निकले बाजार,
तो लोग कहेऽऽ
Dips है लाचार ।
ओ हो होऽऽऽऽ
:p8-)
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